जनरल बख्त खान की पहचान 1857 की क्रान्ति में एक मुख्य क्रांतिकारी के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म रोहिलखंड में बिजनौर में हुआ था, ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में सूबेदार थे और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1857 के भारतीय विद्रोह में भारतीय विद्रोही बलों के कमांडर-इन-चीफ थे।
बख्त खान का रूहेला वंश से सीधा सम्बन्ध था, क्यूंकि उनके पिता का नाम अब्दुलाह खान था जो कि नाजिब-उड़-दूलह के भाई थे। बख्त खान गुलाम कादिर खान रूहेला के कजिन भाई थे। दरअसल 1774 तक रूहेला वंश के पास अवध का शासन था, लेकिन कालान्तर में ये इनसे छीनकर अंग्रेजों तक पहुच गया और 1801 के बाद तो अंग्रेजों की राज्य में प्रभाविता बढ़ जाने से उनकी अंग्रेजों से दुश्मनी हो गयी।
अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव के बीच में मुगल साम्राज्य को स्थायित्व देने के लिए उन्होंने कोर्ट ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन(Court of administration) बनाया था जिसके सदस्यों को आर्मी और सरकारी विभाग से चुना जाता था। मुंशी जीवन लाल के अंग्रेजो को लिखे पत्र में लिखा था कि “बख्त खान ने बहुत अच्छे फैसले लिए हैं।”
नमक और शक्कर पर कोई टैक्स नहीं हैं, उन्होंने विद्रोहियों द्वारा की जा रही लूट पर भी रोक लगाई, दुकानदारों को भी पूरी सुरक्षा दी, जिनके पास हथियार नहीं उन्हें उपलब्ध करवाए, दिल्ली बाज़ार से सैनिकों को हटा लिया गया क्योंकि वहाँ पर आम-जनजीवन प्रभावित हो रहा, सैनिको का वेतन, आर्मी में काम करने के लिए उनकी जागीर लौटाने का भी वादा किया।
अपने दुश्मनों को हराने के लिए जनरल बख्त खान हमेशा नए नए तरीके अपनाते थे,जिससे दुश्मनों को उनके अगले कदम का अंदाजा नहीं लग पाता था। चाहे वो अंग्रेजो के 300 घोड़ो को छीनकर उनके मालिक तक पहुंचना हो या बरेली और नीमच में अंतिम हमलों की भूमिका तय करना. जिससे अंग्रेज सरकार को आखिर में उनसे संधि करनी पड़ी थी।
1857 की क्रान्ति की शुरुआत अंग्रेजों द्वारा हिन्दू-मुस्लिम की धार्मिक भावनाए पर चोट पहुचाने के कारण ही शुरू हुई थी। उस समय ब्रिटिश आर्मी नयी राइफल लायी गयी थी, जिसके कारतूस पर से ग्रीस को मुंह लगाकर हटाया जाता था। और ये अफवाह थी कि इसमें गाय और सूअर की चर्बी का उपयोग हुआ हैं। इसलिए दोनों ही वर्ग अंग्रेजों के खिलाफ मैदान में उतर गए और राष्ट्रीय स्तर पर आधिकारिक रूप से इनका नेतृत्व बहादुर शाह जफर कर रहे थे लेकिन ये हर कोई जानता था कि क्रांतिकारियों की सेना को और युद्ध का मोर्चा जनरल बख्त खान सम्भाल रहे थे।
अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव के बीच जब ब्रिटिश सेना ने सितंबर 1857 में शहर पर हमला किया था। अंग्रेजों में शहर में कई जासूस और एजेंट थे और बहादुर पर लगातार दबाव डाल रहे थे शाह आत्मसमर्पण करने के लिए।

दिल्ली के आसपास की स्थिति तेजी से बिगड़ गई बखत खान का नेतृत्व विद्रोहियों की संगठन आपूर्ति और सैन्य ताकत की कमी के लिए क्षतिपूर्ति नहीं कर सका। 8 जून 1857 को दिल्ली को घेर लिया गया तब 14 सितंबर को अंग्रेजों ने कश्मीरी गेट और बहादुर शाह पर हमला किया था 20 सितंबर 1857 को बख्तर खान की अपील के खिलाफ अंग्रेजों को आत्मसमर्पण करने से पहले हुमायूं के मकबरे में भाग गए। सम्राट को गिरफ्तार कर लिया गया उस समय बख्त खान ने खुद दिल्ली छोड़ दी और लखनऊ और शाहजहांपुर में विद्रोही बलों में शामिल हो गए।
बाद में 13 मई 1859 को, वह गंभीर रूप से घायल हो गया और उनकी मृत्यु हो गई।