अंतर्राट्रीय राजनीति के दिग्गज अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की अस्थायी सरकार के पहले 100 दिनों की कारकर्दगी का जायज़ा ले रहे हैं। 31 अगस्त को जब तालिबान काबुल में दाख़िल हुए तो उस समय न केवल देश का ख़ज़ाना बिल्कुल ख़ाली था, बल्कि सरकारी नौकरों का तीन महीने का वेतन भी बाक़ी था। अफ़ग़ानिस्तान में लगभग 10 लाख सरकारी मुलाज़िमों को वेतन और अन्य सुविधाओं की मद में कोई 35 करोड़ डालर दिए जाते हैं। इसी के साथ अमेरिका में अफ़ग़ानिस्तान स्टेट बैंक के 9 अरब डालर फ्रीज़ हुए पड़े हैं। इसके बावजूद रुके हुए वेतनों की अदायगी मुल्लाओं की एक बड़ी उपलब्धी रही।
पारदर्शी़ न्याय व्यवस्था़, शांति स्थापना और मौलिक अधिकारों से वंचित महिलाओं का कल्याण तालिबान सरकार की ऐसी उपलब्धी है जिसे कोई भी मीडिया दिखाने से हिचकिचा रहा है, क्योंकि यह मीडिया द्वारा बनाई गई तालिबान की छवि के बिल्कुल विपरीत है। नई अफ़ग़ान सरकार द्वारा महिलाओं के अधिकारों के हवाले से तैयार की गई विस्तृत मार्गदर्शिका है, इस सच्चाई को उजागर करती है। सूचना मंत्रालय ने इस दस्तावेज़ को ‘‘महिलाधिकारों का चार्टर’’ क़रार दिया है। इस के कुछ अहम प्वाइंट इस तरह हैं:
– निकाह के लिए लड़की की रज़ामंदी लाज़िमी है। इस मामले में जब्र, डर, अदला-बदली, जायदाद का बटवारा और किसी भी रूप में धन की पेशकश या ज़बरदस्ती, गंभीर अपराध माना जाएगा।
– महिला कोई जायदाद नहीं कि उसे किसी सौदे का हिस्सा बना लिया जाये। औरत समाज में बराबर की हिस्सादार है। इसकी आज़ादी पर कोई सौदेबाज़ी नहीं हो सकती।
-पति की मौत पर इद्दत गुज़ारने के बाद औरत अपने भविष्य का फ़ैसला ख़ुद करेगी।
– बेवा को दूसरे निकाह की सूरत में मह्र तय करने का पूरा इख़्तियार होगा।
– बेवा औरत को तर्के में उस का जायज़ हक़ हर क़ीमत पर दिलाया जाएगा।
– एक से ज़्यादा बीवियां रखने वाला मर्द सभी बीवियों के साथ इन्साफ़ करने का पाबंद होगा।
– स्थानीय अदालतें महिला को उनके मां-बाप, पति, भाई और बहन के तर्के से शरीयत के मुताबिक़ हक़ दिलवाने की पाबंद हैं। हक़ मारे जाने की हालत में औरत बड़ी अदालत को दरख़ास्त दे सकती है जिसकी सुनवाई 48 घंटों के अंदर-अंदर होगी।
इन कानूनों का मक़सद जनता को परेशान करना हरगिज नहीं है, इस लिए लोगों को इस सिलसिले में तरबियत दी जाएगी। इस के लिए ये क़दम सुझाए गए हैं:
– वज़ारते औक़ाफ़ की निगरानी में उलमा महिला के अधिकारों की जानकारी की मुहिम चलाएंगे। किताबचों और तक़रीरों के ज़रिये जनता को ये बात समझाई जाएगी कि अल्लाह के दिये अधिकारों की अदायगी न करना सख़्त गुनाह है। महिला से बदसुलूकी और उसकी हक़तलफ़ी रब की नाराज़गी का सबब बन सकती है।
– सूचना मंत्रालय, संवाद और तक़रीरों के ज़रिये महिला के शरई अधिकारों से जनता को परिचित करेगा।
– अदालतें क़ानून लागू करने वाली संस्थाओं को निर्देश जारी करेंगी कि महिला, ख़ासतौर से बेवाओं के अधिकारों का हनन गंभीर अपराध है और महिला की हालत सुधारने के लिए उनके अधिकारों की हर स्तर पर रक्षा की जाये।
– राज्यों के गवर्नर और ज़िलों के अधिकारी इस स्ंबंध में न्याय मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, औक़ाफ़ का मंत्रालय और दूसरे अधिकारी एक दूसरे से पूरा सहयोग करें ताकि महिलाओं के अधिकारों के हनन की कोई संभावना भी बाक़ी ना रहे।