मैंने कभी भी बॉलीवुड अभिनेता व अभिनेत्री के बारे में कुछ नहीं लिखा, इसकी वजह मुझे इस क्षेत्र में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है। मेरे नज़दीक समाज व देश के लिए नए उपलब्धियां हासिल करने वाले ही असल हीरों है। फ़िल्मी जगत के हीरों काल्पनिक जबकि वास्तविक दुनिया के हीरों असल है। शाहरुख ख़ान भी उसी काल्पनिक दुनिया के हीरो में ही आते हैं। लेकिन एक इंसान का अपना देश व समाज होता है। देश में बसने वाले सभी उतना ही देशभक्त होता है जितना की देश का प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति। वर्त्तमान में एक विशेष जाति धर्म के पहचान व नाम के साथ जिस तरह से पूरी कौम व मिल्लत को कटघरे में लाने की कोशिश हो रही है यक़ीनन इस मुल्क के लिए बहुत अफसोसजनक है।

हालांकि शाहरुख ख़ान जैसे किसी भी अभिनेता के लिए धर्म ज्यादा मायने नहीं रखता है । एक फ़िल्मी एक्टर के लिए धर्म की कसौटी को पाबंदी के साथ मानना मुश्किल है। लेकिन देश में मौजूद सांप्रदायिक तत्वों के लिए नफ़रत व सांप्रदायिक माहौल खड़ा करने के लिए शाहरुख ख़ान जैसे मुस्लिम नाम ही काफी है। अगर व्यक्ति देश व दुनिया में मशहूर हो तो हंगामा खड़ा करना और ज्यादा आसान हो जाता है।

शाहरुख ख़ान हो या उनके बेटे या उनके परिवार का कोई भी सदस्य अगर कोई अपराध करता है तो वो मामला अपराध की श्रेणी में आता है।  ऐसे मसअले के हल के लिए देश में कानून है। कोर्ट में इसका फ़ैसला होगा। लेकिन मौजूदा वक्त में देश में कुकुरमुत्ते की तरह पनपे सांप्रदायिक तत्वों को शाहरुख या उनके परिवार को देशद्रोही कहने का हक़ किसने दिया? बिडंबना देखिये ऐसे गोडसेवादीयों ने महात्मा गांधी तक को भी नहीं बख्सा।  गांधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री मोदी, गांधी जी के मूर्ति पर फूल बरसा रहे थे और भक्त ट्विटर पर गोडसे जिंदाबाद का ट्रेंड चला रहे थे।  भला ऐसे झूठे राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े गोडसेवादीयों को क्या मालूम की भारत छोड़ो आंदोलन में सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे शाहरुख ख़ान के पिता मीर ताज मोहम्मद ख़ान।

पाकिस्तान के बजाय भारत को चुना

पेशावर में जन्मे मीर ताज मोहम्मद ख़ान ने 16 साल के उम्र में विभाजन से पहले पेशावर छोड़ कर दिल्ली आ गए. ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान के आंदोलन से जुड़कर जंगे आज़ादी में भाग ले लिया। मीर ताज मोहम्मद ख़ान अपने जमाने के जाने-माने वकील थे। रियासत में दिलचस्पी ने उन्हें स्वाधीनता संग्राम से जोड़ दिया। वे दो बार जेल भी गए। मिजाज के मीर ताज सचमुच मीर थे। यार-दोस्तों के साथ एक बार उन्होंने कंचनजंगा पर्वत की चढ़ाई की।  कद-काठी ताज मोहम्मद ख़ान की ऐसी थी कि के.आसिफ की फिल्म मुगले-आज में उन्हें मानसिंह की भूमिका का प्रस्ताव मिला था। ताज मोहम्मद ख़ान ने तड़ाक से ना कर दी। मीर ताज मोहम्मद ख़ान के अनुसार सिनेमा यानी नौटंकी। ताज मोहम्मद ख़ान को क्या खबर थी कि उनके साहबजादे एक दिन इसी नौटंकी से जमाने की नाक में नकेल डाल देंगे।

मीर ताज मोहम्मद ख़ान बहुत ही शिक्षित व्यक्ति थे. ताज मोहम्मद ख़ान एम.ए. व एल.एल. बी के साथ हिन्दी, कश्मीरी, पश्तो, अंग्रेजी, इतालवी, उर्दू, पंजाबी, फारसी तमाम भाषाएँ फर्राटे से बोलते थे। शाहरुख ने बहुभाषा ज्ञान तो नहीं, पर वाचालता पिता से उधार ली है। वकालत पढ़े ताज मोहम्मद ख़ान  ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया। दिल्ली में कुछ बच्चों को आग से बचाने के लिए उन्हें पुरस्कार स्वरूप एक मैडल भी जीता था। यह तमगा वे अक्सर बाल शाहरुख को दिखाया करते थे। ताज मोहम्मद ख़ान ने कभी अपने नवाबजादे को बंदिशों में नहीं बाँधा.  जिसका जिक्र शाहरुख ख़ान भी कई कार्यकर्मो में कर चुकें है. ताज मोहम्मद ख़ान  बला के भुलक्कड़ इंसान थे। शाहरुख को याद है कई बार उन्होंने अपने वालिद को टॉयलेट-सीट पर बैठकर उबले अंडे खाते देखा था। ताज मोहम्मद ख़ान यह भी भूल जाते थे कि यह उनका सिंहासन नहीं है। एक बार तो ताज मोहम्मद ख़ान  बगैर पतलून पहने दफ़्तर जाने लगे, तो बेगम साहिबा ने याद दिलाया। शाहरुख के पिता एक ख़ानदारी रईस परिवार से आए थे। मगर दिल्ली में संघर्ष करना पड़ा।

वकालत में रुचि नहीं ली, व्यवसाय चलता नहीं। अपनी बेटी शहनाज़ (शाहरुख की बहन) को उन्होंने शहजादी की तरह पाला। शहनाज उम्र में शाहरुख से पाँच साल बड़ी है। मीर ताज मोहम्मद ख़ान की कैंसर से हुई मृत्यु ने शाहरुख को बुरी तरह तोड़ दिया। 19 सितंबर 1981 को  मीर ताज मोहम्मद ने आखिरी साँस ली। इसके पहले कई रात जागकर शाहरुख और शहनाज ने पिता को लम्हा-लम्हा मौत के आगोश में जाते देखा था। पिता की मृत्यु के साथ 14 – 15 साल के उम्र में शाहरुख ने अपना सबसे अच्छा दोस्त  और सरपरस्त खो‍ दिया।

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