ऐक्टिविस्ट शरजील इमाम के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण मामले में राजद्रोह का मुक़दमा चलेगा। दिल्ली की एक अदालत ने शरजील इमाम के खिलाफ़ राजद्रोह समेत आईपीसी की अन्य कई धाराओं में आरोप तय कर दिए। ऐडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने राजद्रोह, धर्म के आधार पर समूहों में वैमनस्यता फैलाना, देश की अखंडता के खिलाफ़ बयान देना, शरारत भरे बयान देने के अलावा ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों के तहत आरोप तय किए हैं।

मोदी सरकार द्वारा लाए गए विवादित नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ राजधानी दिल्ली के जामिया नगर इलाक़े और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शनों के दौरान शरजील द्वारा दिए गए भाषणों से यह मामला जुड़ा है।

दिल्ली पुलिस ने 2020 में शरजील इमाम के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की थी। बाद में उसमें यूएपीए की धाराएं भी जोड़ी गईं। 13 दिसंबर 2019 को दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शरजील इमाम ने भाषण दिया था। इसके बाद 16 जनवरी 2020 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी भाषण दिया था। शरजील इमाम जनवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में हैं।

जामिया में 13-14 दिसंबर, 2019 को हुई हिंसा को लेकर जामिया नगर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज की गई थी। पुलिस ने 25 जुलाई, 2020 को मामले में चार्जशीट दायर की थी।

हालांकि शरजील पर ये सारे मुक़दमे महज़ आरोपों की बुनियाद पर चलाए जा रहे है, उसके ख़िलाफ़ न किसी ने ऐसी कोई शिकायत की है और न ही उसके ख़िलाफ़ कोई सुबूत है। आम तौर पर पुलिस की ओर से ऊपरी दबाव में क़ायम किये गए इस तरह के मुक़दमे अदालतों में टिक नहीं पाते हैं, लेकिन लम्बी अदालती प्रक्रिया के बाद निर्दोष साबित होने तक आरोपी की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाती है। हमारे देश में इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हैं कि मुस्लिम नौजवानों को झूठे-सच्चे मुक़दमों में उलझाकर वर्षों शारीरिक और मानसिक उत्पीरण का शिकार बनाया गया और अंततः वे अदालत से बाइज़्ज़त बरी हो गए।

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