आगामी विधानसभा चुनावों ने भाजपा-आरएसएस को करो या मरो की हालत में ला खड़ा किया है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं इन्हें अपनी मंज़िल दूर होती नज़र आ रही है। जनता उनके भावनात्मक नारों में भी फंसती नहीं दिख रही है, जिससे उनकी बौखलाहट बढ़ती जा रही है। अब संघ पंमुख ने हिन्दुओं की ग़ैरत को ललकारा है। चित्रकूट में चल रहे तीन दिवसीय हिन्दू एकता महाकुंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि जो लोग हिंदू धर्म को छोड़ कर दूसरा धर्म अपना चुके हैं उनकी घर वापसी होनी चाहिए। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भय ज्यादा दिन तक बांध नहीं सकता है। अहंकार से एकता टूटती है। हम लोगों को जोड़ने के लिए काम करेंगे। महाकुंभ में शामिल हो रहे लोगों को उन्होंने इसका संकल्प भी दिलाया।

संघ प्रमुख का यह समझना कि भारत में हिन्दू भय में जी रहे हैं और उस भय ने उन्हें बांध रखा है, हास्यासपद तो है ही हिन्दुओं का अपमान भी है। इससे ज़्यादा अपमान की बात और क्या हो सकती है कि जनसंख्या का 85 प्रतिशत होने के बावजूद हिन्दू डरे हुए हैं।

आरएसएस प्रमुख ने शपथ दिलाते हुए कहा कि ‘‘मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि किसी भी हिन्दू भाई को हिन्दू धर्म से विमुख नहीं होने दूंगा। जो भाई धर्म छोड़ कर चले गए हैं, उनकी भी घर वापसी के लिए कार्य करूंगा।’’ इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कोई बाहरी शक्ति हिन्दुओं को धर्म से विमुख कर रही है और उनके हिन्दू बने रहने के रास्ते में रुकावट डाल रही है।

भागवत ने आगे कहा , ‘‘उन्हें परिवार का हिस्सा बनाऊंगा। जाति, वर्ग, भाषा, पंथ के भेद से ऊपर उठ कर हिन्दू समाज को समरस सशक्त अभेद्य बनाने के लिए पूरी शक्ति से कार्य करूंगा।’’हालांकि उनकी पूरी लड़ाई ही वर्ण व्यवस्था को बनाए रखने की है, जिसमें परिवार का हिस्सा बनाना तो दूर कई वर्गों को अछूत और मलेच्छ समझा जाता है।

वे कहते हैं, ‘‘मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि हिन्दू बहनों की अस्मिता, सम्मान व शील की रक्षा के लिए सर्वस्व अर्पण करूंगा।’’ हालांकि ‘हिन्दू बहनों’ की अस्मिता, सम्मान व शील को तार-तार करने वाले ‘हिन्दू भाई ही होते हैं। भागवत अगर उन्हें नैतिकता और मानव मूल्यों की शिक्षा देने की कोई व्यवस्था करते तो यह देश के लिए भी अच्छा होता और उनके कॉज़ के लिए भी।

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