संयुक्तराष्ट्र द्वारा आतंकवाद की परिभाषा में ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ और ‘दक्षिणपंथी उग्रवाद’ को शामिल किए जाने पर भारत को आपत्ति

देश में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफरत भरे भाषणों के लिए विश्व मीडिया में आलोचना का सामना कर रहे भारत ने संयुक्तराष्ट्र द्वारा आतंकवाद की परिभाषा में ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ और ‘दक्षिणपंथी उग्रवाद’ को शामिल किए जाने का विरोध किया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरुमूर्ति ने ‘हिन्दूफोबिया’ की नई शब्दावली गढ़ कर संयुक्तराष्ट के सदस्य देशों से उसपर ध्यान देने की मांग की। आतंकवाद की परिभाषा में नई शब्दावली को शामिल किए जाने पर भारत सरकार की बेचैनी को चिंहित करते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवाद से जुड़े प्रस्तावों में ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ और ‘दक्षिणपंथी उग्रवाद’ जैसी शब्दावलियों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे वे कमज़ोर हो जाएंगी।

तिरुमूर्ति ने सिख विरोधी और बौद्ध विरोधी फोबिया का हवला देते हुए कहा कि इस ख़तरे के बारे में बात करनी होगी, ताकि इस तरह के विषयों पर बहस में संतुलन को निश्चित किया जा सके। तिरुमूर्ति ने कहा कि संयुक्तराष्ट्र ने अन्य तरह के धार्मिक फोबिया के बारे में बात की है, लेकिन इसने हिन्दू, सिख और यहूद विरोधी ख़तरों को स्वीकार नहीं किया।

तिरुमूर्ति ने कहा कि एक और रुझान जो पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है वह विशेष प्रकार के धार्मिक फोबिया को उजागर करता है। संयुक्तराष्ट्र ने गत वर्षों में इस्लामोफोबिया, ईसाईफोबिया और यहूदी दुश्मनी को महत्व दिया है। इन तीनों का उल्लेख आतंकवाद के उन्मूलन की वैश्विक रणनीति में भी किया गया है। उन्होंने कहा कि फोबिया, नफ़रत और दुश्मनी को दुनिया के दूसरे बड़े धर्मों के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए। धार्मिक फोबिया के वर्तमान रूप, विशेष रूप से हिन्दू, सिख और बौद्ध धर्म विरोधी फोबिया गंभीर चिंता का विषय है और संयुक्तराष्ट्र के सदस्य देशों को इसके उन्मूलन की कोशिश करनी चाहिए।

तिरुमूर्ति ग्लोबल काउंटर टेररिज़्म कौंसिल, दिल्ली में संयुक्तराष्ट्र में भारतीय राजदूत की हैसियत से बोल रहे थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here